नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख योग क्या है ,योग के महत्त्व, प्रकार हिंदी में और योग के नियम के बारेमे जाने तो आज के लेख में सभी जानकरी देंगे तो लेख को पूरा पढ़े।
योग का अर्थ “आत्मा मस्तिस्क” और शरीर का एक-दूजे से मिलन होता बताया गया है। साथ में ही प्रकृति और मानव शरीर के बीच एक मीलन को कायम बार करार रखना होता है। yog मानव जीवन में सही रीत भात और नियम से जिंदगी जीने का एक मुख्य मार्ग बतलाया गया है वेद पुराणों में । श्रीमद भगवद गीता में भगवन कृष्ण ने बताया कि “yog कर्मसु कौशलम” जिसका मतलब होता हे की yog से ही कर्मों में कुशलता और सफलता आती है।
Yoga शब्द के अर्थ दो होते हैं प्रथम हे जोड़ और पहला है जोड़ और दूजे है समाधि। “शरीर को फिट” ओर मन को शांत और कार्य शील रखने के लिए हम अपने स्वयं की चेतना से नहीं जुड़ते ,समाधि लगने तक पहुँचना बहुत ही मुश्किल होता हे। yog धर्म या दर्शन नहीं बल्कि , गणित से कुछ भी कुछ बेहतर और ज्यादा है। चाहे मानो या न मानो सिर्फ yog करके देख लो। जैसे जली हुई आग में हाथ डाल ने पर जलेगे ही ऐसे Yoga विश्वास या मानने का विषय नहीं बल्कि रिजल्ट मिलने का मतलब है।
योग के नियम – Rules of Yoga
Yoga को करने के लिए कुछ नियम हे जैसे की yoga को सूर्योदय होने से पहले और सूर्यास्त होने के बाद ही करना बताया गया हे । सवेरे जल्दी से नींद से उठकर yog करना बहुत ही लाभदायक कहाजाता हे yogasa से पहले थोड़ी “रनिंग करना जरूरी” माना जाता है क्योकि इंसान का शरीर पूरी तरह से खुल के yog करने योग्य तैयार हो जाये। Yoga करने की शरुआत की शुरुआत ताड़ासन से करने से को वेद पुराणों में बताया गया हे yog को सुबह खाली पेट रहकर करना बहुत जरुरी हे चाहिए।
जो इंसान फस्ट टाइम yog करते हैं उन लोगो को पहले हल्के प्रकार yogasan करने को बताया जाता हे नहीं तो किसी Yoga गुरु की देखरेख से हीकरने चाहिए करें। अगर आप शाम होने पर yog करते हे तो खाना खाने के तकरीब तीन-चार घंटे पश्यात ही करें और yog करके आधे-पौने घंटे के पश्यात ही कुछ खाना को खाएं। Yoga करके तात्कालिक ही नहाना नहीं चाहिए, कुछ वक्त बाद ही नहाना चाहिए। yog करने के लिए कपडे हररोज़ एकदम गीले ही पहने जिस जगह yog काना होता हे वह जगह शांत और एकदम सी साफ -सुथरी होनी चाहिए योगासान के वक्त मन मे नकारात्मक विचार नहीं आने चाहिए
योग का जरुरी और सबसे महत्व पूर्ण नियम है कि yog को धैर्य से करें एवं किसी आसन करने के वक्त ज्यादा जोर नही लगाना हे लगाएं। मनुस्य के शरीर की क्षमता के बराबर ही आसान करें। yogasa को सांस छोड़ने और सांस लेने पर ही निर्भर करते हैं, जिसका पूरी जानकारी होना जरूरी है। पहले सीखने के बाद ही करना ही बेहतरीन कहाजाता हे
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योगा के प्रकार – Types of Yoga In Hindi
योगा के प्रकार के बारे में किसी को पूरा ज्ञात नहीं हे लेकिन आमतौर पर बताया जाते की राजयोग ,कर्मयोग,ज्ञानयोग ,हठयोग ,भक्तियोग, कुंडलियायोग | लययोग हे जो बहुत चर्चित हे
- राज़ yog
- ज्ञान yog
- भक्ति yog
- हठ yog
- लय yog
- कुंडलिनीyog
राज योग
योगा की पूर्ण अवस्था जो की समाधि कहाजाता हे इस ही rajyoga का नाम दिया गया हे वेदपुराणो में बताया गया हे की योगों का राजा हे rajyog कारण ये बताया जाता हे की इसमें समाधी। yog में सभी योगो के प्रकार की एक ना एक अवस्था जरूर देख ने को मिलती है। राजयोग में हररोज़ की जिंदगी से कुछ वक्त मिलने पर आत्म-निरीक्षण किया जाता माना जाता है।
समाधि योग एक ऐसी साधना yog है, जो हर कोई मनुष्य कर सकता है। जिसका दूसरा नामकरन महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग कह कर yog सूत्र में अष्टांग yog का बड़े विस्तार से विवरण किया था । महर्षि ने इन राजयोग के आठ प्रकार बताए हे यम- (शपथ लेना
- नियम- (आत्म अनुशासन)
- आसन- (मुद्रा)
- प्राणायाम -(श्वास नियंत्रण)
- प्रत्याहार- (इंद्रियों का नियंत्रण)
- धारणा-(एकाग्रता)
- ध्यान -(मेडिटेशन)
- समाधि- (बंधनों से मुक्ति या परमात्मा से मिलन)
ज्ञान योग

जिसको भी मार्ग दिमाग की बुद्धि खोलना हे उनको ये Yoga को करना चाहिए इस को Yoga को ज्ञान का मार्ग बताया गया है। ज्ञान योग को स्वयंम और ज्ञान से परिचय कराने का एक जरिया कहाजाता हे इस ज्ञानYoga से मनुस्य के मन में अज्ञान मय अंधकार दूर करके ज्ञान का दिया जलाया जाता है मनुस्य की आत्मा को शुद्धि करने के लिए ज्ञान योग को ही बेहतर मानाजाता हे
मन-चिंतन करते हुए मनुस्य को शुद्ध स्वरूप को आत्मा पाने को ही ज्ञान योग बतलाया जाता हे इसके बाद ही ज्ञान Yoga के ग्रंथों का अभ्यास कर के बुद्धि का ग्रोथ करना कहाजाता हे सभी Yoga में इनको ही सबसे मुश्किल योग माना जाता हे लास्ट वेदपुराण भी यही कहते हे की स्वयं की जात में उतरकर अपार शक्ति की खोज करके ब्रह्म में विलीन होने का मतलब ही ज्ञान योग की दूसरा नाम कहते है।
कर्म योग – योगा कर्मो किशलयाम जिसका हिंदी मतलब हे की कर्म करते वक्त इसमें लीन हो जाना इस Yoga को इनहीं श्लोक के द्वारा ही समझ पाते हैं भगवन कृष्णा ने भी गीता ग्रंथ में कहा था की “Yoga कर्मसु कौशलम जिसका अर्थ हे की सफलता एवं कुशलतापूर्वक कार्य करना ही एक Yoga कहा जाता है।
कर्म योग का नियम हे की हालही में जो भी है जो हम को मिला हे और अनुभव करते हैं वे सब अपने पूर्व जन्मो के कर्मों पर संभावित ही होता आरहा है कर्म Yoga की वजह से ही मनुष्य का मन किसी भी प्रकार के मोह-माया उतरे और फंसे बिना ही संसार के कर्म करता है फीर अंतह कल में परम पिता परमेश्वर में विलीन होना चाहता हे संसारिक मनुस्योको के भले के लिए कर्म Yoga को सबसे लाभकरक माना जाता है।
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भक्ति योग
मनुस्य, प्राणी।, ईश्वर, जल सृष्टि, पृध्वी , प्राणियों, पशु-पक्षियों इन सबके प्रति निर्दोष प्रेम एव समर्पण भाव और निष्ठा पूवर्क के वर्तन को ही भक्ति Yoga ही कहा और माना जाता है। भक्ति Yoga कोई भी मनुष्य अपनी कोई भी राष्ट्र ,धर्म , उम्र, निर्धन हो या पैसे वाला व्यक्ति भक्तिYoga कर सकता है।
हरेक मनुस्य को अपना आराध्य देव मानकर उस देव की पूजापाठ करता जरूर है, इनकी वही पूजा को वेद पुराणों में भक्ति Yoga कहते है। जो भक्ति पवित्र और निस्वार्थ भाव से करते है, क्योकि वो अपने लक्ष को बिना रूकावट के प्राप्त कर सकें। और भक्तिYoga में विलीन हो कर जीवन का उदेश सफल कर सके
हठ योग
यह Yoga प्राचीन काल से बहुत प्रसिद्ध और पुराणी मानिजाती हे हठ Yoga प्राचीन कल से भारतीय साधना की रीत हे। हठयोग में ह का मतलब हकार दाई नासिका स्वर, उसको पिंगला नाड़ी नाम से पहचानी जाती हे। और, ठ का मतलब ठकार यानी बाईं नासिका , जिसको इड़ा नाड़ी से पहचानी जाती हैं,क्योकि Yoga एक दूसरे को मिलान का कार्य करता है।
हठ Yoga के दौरान इन दो नाड़ियों को संतुलन रखने का जरिया हे ऐसा प्रतीत होता आया हे की भारत में प्राचीन समय से संत और ऋषि-मुनि हठ Yoga करते आये हे उस समय हठ Yoga का प्रचार बहुत बढ़ चूका था इस Yoga को करने से इन्सान शरीर से स्वस्थ और प्रफुल्लित रह सकते हैं और मन से परम शांति का अनुभव कर पाता है।
कुंडलिनीयोग/लय योग
Yoga के द्धारा मानव के शरीर के अंदर सात चक्र बताये गए हैं। जिस वक्त ध्यान के द्धारा कुंडलिनी को प्रभावित कर दिया जाता है, तब शक्ति का उदभव हो कर जागृत होकर मस्तिष्क और मन की ओर जाते है। उस वक्त शरीर के सभी सात चक्रों को गतिशील करता है। उस क्रिया होने की प्रक्रिया को ही कुंडलिनीYoga /लय Yoga कहते है।
लययोग में इंसान बाहरी बंधन से छूट कर मस्तिष्की भीतर उदभव होने वाले आवाज को सुन पाने का अनुभव करता है, जिसे वेदपुराणो में नाद के नाम से जाना जाता है।उस क्रिया के अनुभव से ही मन और मस्तिष्क की चंचलता कम करके खत्म होती है एव एकाग्रता बढ ने लगती है
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योग मुद्रा के प्रकार
- ज्ञानमुद्रा
वायुमुद्रा - पृथ्वीमुद्रा
- अग्निमुद्रा
- वरुणमुद्रा
- शून्यमुद्रा
- प्राणमुद्रा
अपानवायु मुद्रा
योगा के प्रकार हिंदी
अपने भारत देश में Yoga का महत्वत्व सबसे ज्यादा हे इन में हिंदी के प्रकार में आठ अंग बताये जाते हे
यम –
जिसका मतलब हिंसा नहीं करना ,गैरलोभ , झूठ नहीं बोलना,परस्त्री पर बुरी नजर न डालना और दूसरे की चीज़ पर नजर मत डालना
नियम –
तपस्या ,अध्ययन पवित्रता, संतुष्टि और अपने भगवान और ईस्ट देव के प्रति आत्मसमर्पन की भावना रखना
आसन-
इसका।सीधा अर्थ होता हे की “बैठने का आसन” और Yoga के सूत्र में मन के ध्यान केंद्रित करना
प्राणायाम –
प्राण, सांस,और अयाम को नियंत्रण करके उसीको चालू और बंद करना। इन से जीवन की शक्ति को नियंत्रण करने की रीत बताई गई हे
प्रत्यहार –
बाहरी वस्तुओं से अपने मन की भावना और अपने अंगों के आहार विहार की चाहना की प्रत्याहार कियाजाता हे
धारणा-
एक ही चीज़ पर अपने मन का लक्ष्य रखने की चीज़ को धारणा कहते
ध्यान-
ध्यान का मतलब की किसी भी वस्तु के बारे में प्रकृति रूप से गहन चिंतन को ध्यान कहा जाता है
समाधि-
ध्यान में चीज़ को मन और चैतन्य के साथ मिलान करना होता हे जीसके दो प्रकार कहते – अविकल्प और सविकल्प। अविकल्प समाधि में मनुस्य को संसार में वापस लौट के आने का कोई मार्ग और व्यवस्था नहीं मिलती कहते हे यह Yoga की उच्च और पूर्ण अवस्था कहते है।
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Questions
1 . योग का अर्थ क्या है?
सामान्य आत्रमा योग एटले जोडवू ऐटले के बे तत्वों को मिलन योग कहेवामा आवे है यही को परमात्मा साथे जुड़ना आत्मनो हेतु है। योग की पूर्णता इसे भी जिव भाव में पड़ा मनुष्य परात्मा से जुड़कर अपंने निज पोतनी जात्मा स्थापित हो जाए।
2 . योग शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
योग शब्दो में शाबिदक अर्थ जोड़ना या मिलना करना है योग शब्द को संस्कृत व्याकरण के यूज धातु से उत्पन्न हुआ मानते है।
3 . योग शब्द संस्कृत से आया है। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के उपयोग से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है संघ या मिलन। अर्थात् ईश्वर के साथ आत्मा का मिलन योग के साथ देखा जाता है
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Disclaimer
तो फ़्रेन्ड उम्मीद करता हु की हमारा यह लेख योग क्या है ,योग के महत्त्व, प्रकार हिंदी में आप को जरूर पसंद आया होगा तो दोस्त इसी तरह की जानकारी पाने के लिए हमरे साथ जुड़े रहिये और आपके मनमे कोई भी प्रश्न हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताये